दिल्ली की देहली पर एक योगी अड़ा खड़ा
है तेज उसके तप में, है बलिदान जीवन में
सिंह नाद से उसकी देखो सारा देश है जगा खड़ा
कर ना हठ तू इटली के दूत अब इतना
खोल तू आँखें तेरे द्वार पे युग सम्राट खड़ा
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है साक्षात् वही, हर जन के मन मंदिर में
हो जो धर्म की हानि कभी, करता है कृपा वही
चला सुदर्शन जो ध्रस्टो पर, इंक़लाब के नारों से
है अन्ना जी के साथ साक्षात् अब तारणहार वही
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न तू हिन्दू है न मुसलमान, जाती धर्म छोड़ कहीं,
तू पुत्र है इस धरा का, है मातृ-धर्म एक यही,
अल्लाह भी न तुझे बक्षेगा, जो तू राष्ट्र धर्म से चूक गया,
दोषी होगा तू देश का, जो ओछी बातो से फिसल गया
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अन्ना की है आंधी आई, सोये भारत को जगाने आई
खूब करली लूट चोरी, अब नहीं नेता खेर तेरी
करले जतन तू चाहे जितने, उलटे सीधे हत्कंडे सारे
भारत के युवा के हाथो अब निश्चित है मौत तेरी
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हो जिंदा अगर तुम, तो पिंजरे में मत रह जाना
है आग लगी जहाँ में, तुम अँधेरे में न रह जाना
पुकारती है आज धरती, देश की खातिर कुछ कर जाना
है तुमसे ही नसले कल की, अपना नाम गर्व से दे जाना
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है जनतंत्र का आधार यही, की हो जो जनता चाहे वही
संसद की जो गरिमा है, वो राष्ट्र-भावना से परे नहीं
जय हिंद !
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waah..great creation..
ReplyDeleteThanks Zeal..:)
ReplyDeleteAnna ji ke liye itni achhi kavita ..bahut achhe.
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